अहंकार और प्रेम

जय माँ विंध्यवासिनी
अहंकार और प्रेम…..!!!!!
जगत की और देखने वाला अहंकार से भरा हुआ हो जाता है, प्रभु की और देखने वाला प्रेम से पूर्ण होता है।
अहंकार सदा लेकर प्रसन्न होता है,प्रेम सदा देकर संतुष्ट होता है।
अहंकार को अकड़ने का अभ्यास है,प्रेम सदा झुक कर रहता है।
अहंकार जिस पर बरसता है उसे तोड़ देता है,प्रेम जिस पर बरसता है उसे जोड़ देता है।
अहंकार दूसरों को ताप देता है,प्रेम शीतल मीठे जल सी तृप्ति देता है।
अहंकार संग्रह में लगा रहता है,प्रेम बाँट-बाँट कर आगे बढ़ता है।
अहंकार सबसे आगे रहना चाहता है,प्रेम सबके पीछे रहने में प्रसन्न है।
अहंकार सब कुछ पाकर भी भिखारी है ,प्रेम अकिंचन रहकर भी पूर्ण धनी है।
।। जय माँ ।। डॉ•योगानन्द गिरी बूढ़े नाथ मन्दिर मिर्ज़ापुर