“गिरिजापुरवासी जनही करत सदैव सनाथ, वृद्धेश्वर उपनाम पुनि शिव श्री बूढ़ेनाथ.”
जूना अखाड़ा जो कि प्रारम्भ में दशनामी अखाड़ा के नाम से जाना जाता रहा, जिसको कालान्तर में भैरो अखाड़ा के नाम से जाना गया, ब्रिटिश हुकूमत के समय १८६० ई० में जूना अखाड़ा का पंजीकरण रजिस्ट्रेशन एक्ट २१ के अंतर्गत हुआ. ज्ञात समयानुसार प्रारम्भ से ही मंदिर की सेवा/व्यवस्था नागा सन्यासियों के द्वारा किया जाता रहा है, जो आज भी अनवरत जारी है. वर्तमान में गादिपति श्री महंथ शिवानन्द महाराज के शिष्य महंथ डॉ योगानंद गिरि जी के कुशल मार्गदर्शन में मंदिर की पूजा व्यवस्था/देखरेख भक्तों के सहयोग से निरंतर की जा रही है. महंथ जी के मार्गदर्शन में नित्य सनातन ज्ञान, वेदपाठ, कर्मकाण्ड, अनुष्ठान, संस्कृति व संस्कार की शिक्षा आश्रम में आये भक्तों को दी जाती है. बूढ़ेनाथ आश्रम में किये गये किसी भी धार्मिक अनुष्ठान का तत्क्षण प्रभाव देखने को मिलता है.
जम्मू और कश्मीर रियासत के अंतिम शासक महाराजा हरि सिंह के पिता राजा अमर सिंह द्वारा तत्कालीन महंथ भैरो गिरि जी महाराज को अष्टधातु का घंटा दान दिया गया था. नेपाल नरेश राजा वीरेन्द्र के पूर्वजों द्वारा भी एक अष्टधातु का घंटा दान किया गया था. दोनों ही घंटे आज भी मंदिर प्रांगण में शोभायमान हैं. काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही बूढ़ेनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी महारानी अहिल्या बाई होलकर द्वारा करवाया गया था. समय-समय पर मंदिर की देखरेख व सेवा कार्य रीवां, डुमरांव व काशी रियासतों के राजाओं द्वारा किया जाता रहा है।