एक बार महर्षि गौतम ने प्रेतों से पूछा – संसार में कोई भी प्राणी बिना भोजन के नहीं रहते अतः बताओ तुम लोग क्या आहार करते हो प्रेतों ने कहा- _अप्रक्षालितपादस्तु यो भुङ्क्ते दक्षिणामुखः।_ _यो वेष्टितशिरा भुङ्क्ते प्रेता भुञ्जन्ति नित्यशः।।_ अर्थात- द्विजश्रेष्ठ ! जहाँ भोजन के समय आपस में कलह होने लगता है वहाँ उस अन्न के रस को हम ही खाते हैं। जहाँ मनुष्य बिना लिपी-पुती धरती पर खाते हैं, जहाँ ब्राह्मण शौचाचार से भ्रष्ट होते हैं वहाँ हमको भोजन मिलता है। जो पैर धोये बिना खाता हैं, और जो दक्षिण की ओर मुँह करके भोजन करता है, अथवा जो सिर पर वस्त्र लपेटकर भोजन करता है, उसके उस अन्न को सदा हम प्रेत ही खाते हैं। जहाँ रजस्वला स्त्री-चाण्डाल और सूअर श्राद्ध के अन्न पर दृष्टि डाल देते हैं, वह अन्न पितरों का नहीं हम प्रेतों का ही भोजन होता है। जिस घर में सदा जूठन पड़ा रहता है, निरन्तर कलह होता रहे, और बलिविश्वैदैव न किया जाता हो वहाँ हम प्रेत लोग भोजन करते हैं। महर्षि गौतम ने पूछा – कैसे घरों में तुम्हारा प्रवेश होता है, यह बात मुझे सत्य-सत्य बताओ। प्रेत बोले – जिस घर में बलिवैश्वदेव होने से धुँए की बत्ती उड़ती दिखाई देती है, उसमें हम प्रवेश नहीं कर पाते। जिस घर में प्रातःकाल की वेला में चौका लग जाता है, तथा वेद मंत्रों की ध्वनि होती रहती है, वहाँ की किसी भी वस्तु पर हमारा अधिकार नहीं होता। गौतम ने पूछा -किस कर्म के परिणाम में मनुष्य प्रेत भाव को प्राप्त होता है? प्रेत बोले -जो धरोहर हड़प लेते हैं, जूठे मुँह यात्रा करते हैं, गाय और ब्राह्मण की हत्या करने वाले हैं वे प्रेत योनि को प्राप्त होते हैं। चुगली करनेवाले, झूठी गवाही देने वाले, न्याय के पक्ष में नहीं रहने वाले, वे मरने पर प्रेत होते हैं। सूर्य की ओर मुँह करके थूक-खकार और मल-मूत्र का त्याग करते हैं, वे प्रेत शरीर प्राप्त करके दीर्घकाल तक उसी में स्थित रहते हैं। गौ-ब्राह्मण तथा रोगी को जब कुछ दिया जाता हो उस समय जो न देने की सलाह देते हैं, वे भी प्रेत ही होते हैं, यदि शूद्र का अन्न पेट में रहते हुए ब्राह्मण की मृत्यु हो जाये तो वह अत्यंत भयंकर प्रेत होता है। विप्रवर ! जो अमावस्या की तिथि में हल में बैलों को जोतता है वह मनुष्य प्रेत बनता है। जो विश्वासघाती, ब्रह्महत्यारा, स्त्रीवध करने वाला, गोघाती, गुरुघाती और पितृहत्या करने वाला है वह मनुष्य भी प्रेत होता है। मरने पर जिसका अन्तिम संस्कार तथा श्राद्ध नहीं किये गये हैं, उसको भी प्रेतयोनि प्राप्त होती है। स्वामी श्री योगानन्द गिरी जी महाराज
श्री बूढ़ेनाथ विजयतेतराम