हम कैसे भूल गए सन्तो का बलिदान

नागासाधुओं का वो युद्ध जो आज भुलाया जा चुका है। अवश्य पड़े। जब अहमद शाह अब्दाली दिल्ली और मथुरा में मार काट करता गोकुल तक आ गया और लोगों को बर्बरतापूर्वक काटता जा रहा था. महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे, तब गोकुल दाऊजी मार्ग पर अहमदशाह अब्दाली का सामना नागा साधुओं से हो गया। कुछ 5 हजार चिमटाधारी पूज्य नागा साधु तत्काल सेना में तब्दील होकर लाखों की हबसी, जाहिल जेहादी सेना से भिड गए। पहले तो अब्दाली साधुओं को मजाक में ले रहा था किन्तु कुछ देर में ही अपने सैनिकों के चिथड़े उड़ते देख अब्दाली को एहसास हो गया कि ये साधू तो अपनी धरती की अस्मिता के लिए साक्षात महाकाल बन रण में उतर गए। तोप तलवारों के सम्मुख चिमटा त्रिशूल लेकर पहाड़ बनकर खड़े 2000 नागा साधू इस भीषण संग्राम में वीरगति को प्राप्त हो गए लेकिन सबसे बड़ी बात ये रही कि दुश्मनों की सेना चार कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाई जो जहाँ था वहीं ढेर कर दिया गया या फिर पीछे हटकर भाग गया..
इसके बाद से ऐसा आतंक उठा कि अगर किसी जिहादी आक्रांता को यह पता चलता कि युद्ध में नागा साधू भाग ले रहे हैं तो वह आक्रांता लड़ता ही नहीं था । डर कर दुम दबा कर भाग जाता था।
हमारा इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं है कि आज हम औरंगजेब, तैमूर,अकबर जैसे बर्बर लुटेरो को तो याद रखते हैं, पर इन भारतीय वीर योद्धाओं के बारें में कुछ नहीं जानते जिन्होंने पग पग पर देश धर्म के लिए अपने बलिदान दिए हैं….