किसी ने एक प्रयोग किया-
एक भगौने में पानी डाला और उसमे एक मेढक छोड़ दिया। फिर उस भगौने को आग में गर्म किया। जैसे जैसे पानी गर्म होने लगा, मेढक पानी की गर्मी के हिसाब से अपने शरीर को तापमान के अनकूल सन्तुलित करने लगा। मेढक बढ़ते हुए पानी के तापमान के अनकूल अपने को ढालता चला जाता है और फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि जब पानी उबलने की कगार पर पहुंच जाता है। इस अवस्था में मेढक के शरीर की सहनशक्ति जवाब देने लगती है और उसका शरीर इस तापमान को अनकूल बनाने में असमर्थ हो जाता है…
अब मेढक के पास उछल कर, भगौने से बाहर जाने के अलावा कोई चारा नही बचा होता है और वह उछल कर, खौलते पानी से बाहर निकले का निर्णय करता है। मेढक उछलने की कोशिश करता है लेकिन उछल नही पाता है। उसके शरीर में अब इतनी ऊर्जा नही बची है कि वह कूद कर बाहर आ सके क्योंकि उसने सारी शक्ति तो पानी के बढ़ते हुए तापमान को अपने अनुकूल बनाने में ही खर्च कर दी… कुछ देर हाथ पाँव चलाने के बाद, मेढक पानी में मरणासन्न होकर पलट जाता है, और फिर अंत में मर जाता है। यह मेढक आखिर मरा क्यों ?
सामान्य उत्तर यही होगा कि उबलते पानी ने मेढक की जान ले ली है लेकिन यह उत्तर गलत है! सत्य यह है कि मेढक की मृत्यु का कारण, उसके द्वारा उछल कर बाहर निकलने के निर्णय को लेने में हुयी देरी थी। वह अंत तक गर्म होते माहौल में अपने को ढाल कर सुरक्षित महसूस कर रहा था, और वह मर गया…
*अतः हर अपने अधिकारो के खिलाफ उठने वाली आवाज का विरोध कीजिए , *अपने समाज के उपर हो रहे अत्याचार का विरोध कीजिए, *अपने समाज को गुमराह करने वालो का विरोध कीजिए, *अपने फायदे के लिऐ आपके समाज को ईस्तमाल करने वाले नेतृत्वकर्ता का विरोध कीजिए, वरना आप भी मेंढक बन जाएंगे…
श्री बूढ़ेनाथ विजयतेतराम