नवरात्रि बिचार

नवरात्रि दुर्गापूजा आ गयी। हलाँकि इसबार प्रचलित पंचांगों के अनुसार भगवती का आगमन और प्रस्थान दोनों शुभ है। लेकिन यदि प्राचीन गणना की पद्धति अपनायी जाती है तो देवी के पट खुलने का दिन मंगलवार को है, जिससे छत्रभंग का फल निकलता है। माना जाता है कि शारदीय नवरात्र में भगवती का आगमन और प्रस्थान के दिन के अनुसार उस वर्ष फलाफल होता है। इस गणना में कलशस्थापना एवं विजयादशमी के दिन के अनुसार फल निरूपित किया जाता है। इस प्रकार की पंक्तियाँ विभिन्न पंचाङ्गों में उद्धृत की जाती है, तआ इसे ज्योतिष शात्र का वचन कहा गया है। किन्तु किस ग्रन्थ मे इसका उल्लेख हुआ है, इसकी जानकारी कोई नहीं देते हैं। विद्वानों से निवेदन है कि इससे प्राचीन पुस्तक में यदि कहीं मिले तो सूचित करने का कष्ट करेंगे। प्रामाणिक ग्रन्थों में नहीं है इसका उल्लेख-
हलाँकि यह स्पष्ट कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि इस प्रकार की गणना का कोई प्राचीन आधार नहीं मिलता है। .म. विद्यापति कृत दुर्गाभक्तितरङ्गिणी, रघुनन्दन कृत स्मृतितत्त्व, कमलाकरभट्ट कृत निर्णयसिन्धु, अमृतनाथ कृत कृत्यसारसमुच्चय आदि प्रामाणिक निबन्ध-ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं है, जबकि ये ग्रन्थ दुर्गापूजा से सम्बन्धित एक-एक विषयों की प्रामाणिक जानकारी देते हैं। 1932-34 ई. में जब दरभंगा में तत्कालीन दुर्धर्ष विद्वानों की मण्डली के द्वारा एक एक पर्व पर विशिष्ट निबन्ध लिखे गये और विद्न्मण्डली के द्वारा उसे अनुमोदित किया गया, जो बाद में चलकर पर्वनिर्णय के नाम से प्रकाशित हुआ, उसमें भी नवरात्र निर्णय पर लिखते हुए गंगौली ग्राम के मीमांसकशिरोमणि पं. जगद्धर झा ने इस प्रकार के फलाफल का कोई उल्लेख नहीं किया। अतः इस गणना को अधिक महत्त्व देना उचित नहीं। फिर भी, समाज में इस प्रकार की अवधारणा व्याप्त है। इसके अनुसार कलशस्थापना का दिन भगवती के आगमन का वाहन एवं उसका फल निम्न प्रकार से है- कलशस्थापना का दिन देवी का वाहन प्रजा में फल रवि एवं सोम हाथी अधिक वृष्टि शनि एवं मंगल घोडा छत्रभङंग गुरुवार एवं शुक्रवार डोली महामारी बुधवार नाव सभी कामनोओं की सिद्धि इसके लिए एक श्लोक भी इस प्रकार उपलब्ध होता है- शशिसूर्ये गजारूढा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकी‌र्त्तिता’।।
इसका फल- गजे च जलदा देवी छत्रभङ्गस्तुरङ्गमे । नौकायां सर्व सिद्धिः स्याद् दोलायां मरणं ध्रुवम् ।।
इसी प्रकार विजयादशमी जिस दिन हो उस दिन के अनुसार फलाफल की गणना इस प्रकार की गयी है-
विजयादशमी का दिन देवी का वाहन प्रजा में फल रवि एवं सोम महिष रोग शनि एवं मंगल वनमुर्गा विकलता बुध एवं शुक्र हाथी सुन्दर वर्षा गुरुवार मनुष्य शुभ एवं सुख शशिसूर्यदिने यदि सा विजया महिषागमने रुजशोककरा शनिभौमदिने यदि सा विजया चरणायुधयानकरी विकला। बुधशुक्रदिने यदि सा विजया गजवाहनगा शुभवृष्टिकरा, सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहनगा शुभसौख्यकरा॥
देवी का पट खुलने के दिन से भी होती है गणना (पत्रिका-प्रवेश के दिन से ) पं. राधाकान्तदेव ने 19वीं शती में भारतीय संस्कृति पर आधारित एक विशाल शब्दकोष शब्दकल्पद्रुम का सम्पादन किया था, जिसका प्रकाशन 1828 से1858 ई के बीच सात खण्डों में हुआ। इस ग्रन्ख में मरक शब्द की व्याख्या में उन्होंने ज्योतिष शास्त्र से इस प्रकार का वर्ष फल दिया है। यद्यपि उन्होंने भी वचन का स्रोत नही देकर -अन्यत्र भी कहा गया है- ऐसा उल्लेख किया है। इसके अनुसार यह नवपत्रिका के प्रवेश के दिन के अनुसार भविष्यवाणी है। नवपत्रिका का प्रवेश सप्तमी तिथि को होता है। अतः पूर्वकाल मे यह गणना सप्तमी की तिथि के अनुसार की जाती थी। शब्दकल्पद्रुम का मूल वचन इस प्रकार है- अन्यदपि । “रवाविन्दौ गजारूढा शन्यङ्गारे तुरङ्गमे । नौकया गुरुशुक्राभ्यां दोलया बुधवासरे ॥ गजे च जलदा देवी छत्रभङ्गस्तुरङ्गमे । नौकायां शस्यवृद्धिः स्यात् दोलायां मरकं भवेत् ॥” इति पत्रिकाप्रवेशफलकथने ज्योतिषम् ॥
इस वचन के अनुसार पत्रिका प्रवेश (मगध में जिस दिन देवी को आँख दी जाती है या पट खुलता है।) उस दिन के अनुसार फल इस प्रकार माना गया है- पत्रिकाप्रवेश का दिन देवी का वाहन प्रजा में फल रवि एवं सोम हाथी अधिक वृष्टि शनि एवं मंगल घोडा छत्रभङंग गुरुवार एवं शुक्रवार नाव अच्छी फसल होना बुधवार डोली महामारी (मरकी) इस वर्ष सन् 2018 में कलशस्थापना बुधवार को हो रही है। इस गणना के अनुसार देवी का आगमन नौका पर होगा, जिसका शुभ फल कहा गया है। इस बार सभी कामनाओं की सिद्धि होगी।
पत्रिका-प्रवेश या देवी के पट खुलने का दिन दिनांक 16 अक्टूबर, मंगलवार को है, अतः पं. राधाकान्तदेव के उद्धरण के अनुसार घोडा पर आगमन से छत्रभङ्ग का योग बनता है।
विजया दशमी दिनांक 19 अक्टूबर, शुक्रवार को है। इस गणना के अनुसार देवी के जाने का वाहन हाथी है, जिसका फल भी शुभ है। कहा गया है कि वर्ष भर सुन्दर वर्षा होगी। सभी लोग धन-धान्य से पूर्ण होंगे। स्वामी श्री योगनन्द गीरी बूढ़े नाथ मंदिर मिर्ज़ापुर