हिन्दू नव वर्ष २०७९ की शुभ मंगलकामनायें

साधना की दृष्टि में तारा और काली की विधि प्रक्रिया में समानता है इसलिए बहुत से खादर किसे काली का ही एक रूप मानते हैं और इसकी साधना भी मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान लगाकर करते हैं इन्हें लाभ भी हो जाता है कि क्योंकि मूलाधार की काली आघा हैa उसकी शक्ति बढ़ाने से सभी शक्तियां बढ़ जाती है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार नेगेटिव मजबूत होने से करंट तेज हो जाता है और वोल्टेज बढ़ जाती है इस के समस्त लड़की बिजली के पोल की शक्ति बढ़ जाती है ऐसे ही काली की शक्ति बढ़ने से तारा सहित सभी की शक्ति बढ़ जाती है देवियों की तंत्र साधना में भी अनेक प्रकार का भ्रम फैला हुआ है।
किसी का संस्कृत का विद्वान होना और आश्रम खोल कर बैठ जाना या कोई ग्रंथ लिख देना उसके तंत्र आचार्य होने का प्रमाण नहीं होता किंतु यह अंदाज जगत और अंधा मानव समाज एवं विचार नहीं करता यह हमेशा अपनी बुद्धि मस्तिष्क और चेतना को दूसरों का गुलाम बना लेता है इसी प्रकार वह बंधन काटने के मोह में नई गुलामी में बन जाता है।
जब भी आप तंत्र के वांग्मय को इस दृष्टिकोण से एक साथ अवलोकन करेंगे यह झाल मेल साफ दिखाई देगा कोई तारा को भुनेश्वरी कह रहा है कोई भुनेश्वरी को कामेश्वरी कह रहा है जबकि यह मूलाधार की देवी है कोई कह रहा है कि मूलाधार में हाकिनी होती है कोई तो कोई आज्ञा चक्र पर डाकनी को बता रहा है इससे यह पता चलता है कि किस स्थान पर कौन सी देवी विराजमान है और उसकी वास्तविक प्रवृत्ति क्या है सभी में सभी गुणों का समायोजन कर दिया गया है।
यहां यह स्पष्ट समझना चाहिए कि प्राकृतिक देवियों के निवास कुण्डलिनी के चक्र हैं और देवताओं के भी है काली मूलाधार की देवी है इनके अष्टदल कमल की प्रत्येक पंखुडियो के बीज स्थानो दिशाओ समस्त भरपूर के क्षेत्र और द्वारों पर अलग-अलग शक्तियां होती हैंs यह सभी महाकाली आघा शक्ति की प्रवृत्ति से युक्त होती है। यहां डाकनी है भैरव जी हैं महाकाल है कामदेव है क्रोध राज हैं यदि कोई आचार्य कहता है कि यहां सरस्वती भी है या इंद्राणी और ब्राह्मणी भी है तो वह तंत्र को विचित्र हास्यप्रद स्थिति में फंसा देता है।
यह सारी बातें जानबूझकर की गई हैं अपने अपने गुरु संप्रदाय को बढ़ाने के लिए की गई हैं यह आचार्यों का नहीं उनके शिष्यों का काम है तारा विशुद्ध चक्र की देवी है यह चक्र मूलाधार का घन चक्र है काली की प्रवृत्ति सर्वथा विपरीत पर अंधी भाव धारा इतनी प्रबल है कि काली की काम क्रोध और हिंसा की भाव धारा के समान शक्तिशाली है पर यह दोनों शक्तियां एक दूसरे पर अन्योनाश्रित है। और प्रवृत्ति अंधी विकराल भयानक रूप से शक्तिशाली और जीव को अपने साथ बाहर ले जाने वाली है।
एक विचित्र बात इस सत्य को प्रमाणित करती है जो भावुक होता है वह भयानक रूप से कामी भी होता है जो प्रेमी होता है वह भावुकता प्रवाह में कुछ भी कर सकता है और ऐसा व्यक्ति जो भावना के प्रवाह में बहता है हिंसक हो जाता है या क्रोधित हो जाता है तो तारा का प्रवाह काली की शक्ति को जगा देता है इस समय ऐसा व्यक्ति महाकाल होता है hइससे संघर्ष करने वाला मृत्यु को प्राप्त होता है।
हम जिस शक्ति की साधना करने जा रहे हैं उसे ठीक ठीक समझना चाहिए और उसके निवास स्थान को जानना चाहिए इसी कारण इसके बाद देवियों का स्थान और प्रवृत्ति उपर ही स्पष्ट कर दी है तारा का स्थान विशुद्ध चक्र है यह रीढऔर कंधों के जोड़ के ऊपर की हड्डी के मध्य बिंदु पर होता हैo यहां नीलांबर महादेव हैं यह शिवलिंग काला और लाल आभा लिये रहता है इससे निकलने वाली शक्ति आसमानी वर्ण की होती है यह भाव की देवी है चंचल शक्तिशाली और महामायाविनी है कला संगीत नृत्य दर्शन आदि समस्त विद्याओं की देवी यही है यदि यह स्थिर हो जाए और नियंत्रण में आ जाए तो काली स्वमेव नियंत्रण में आ जाती है और जिसने भी यह दोनों शक्तियों को नियंत्रित कर लिया हैk तो वह सदाशिव है साक्षात महेश्वर है उसके वश में समस्त शक्ति स्वमेव आ जाती हैं।